भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पद / भारतेंदु हरिश्चंद्र
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:58, 6 जून 2007 का अवतरण
तेरी अँगिया में चोर बसैं गोरी !
इन चोरन मेरो सरबस लूट्यौ मन लीनो जोरा जोरी !
छोड़ि देई कि बंद चोलिया, पकरैं चोर हम अपनो री !
"हरीचन्द" इन दोउन मेरी, नाहक कीनी चितचोरी !
तेरी अँगिया में चोर बसैं गोरी !!