Last modified on 21 जुलाई 2006, at 14:43

लहर / जयशंकर प्रसाद

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:43, 21 जुलाई 2006 का अवतरण

लेखक: जयशंकर प्रसाद

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~

वे कुछ दिन कितने सुंदर थे ?
जब सावन घन सघन बरसते
इन आँखों की छाया भर थे

सुरधनु रंजित नवजलधर से-
भरे क्षितिज व्यापी अंबर से
मिले चूमते जब सरिता के
हरित कूल युग मधुर अधर थे

प्राण पपीहे के स्वर वाली
बरस रही थी जब हरियाली
रस जलकन मालती मुकुल से
जो मदमाते गंध विधुर थे

चित्र खींचती थी जब चपला
नील मेघ पट पर वह विरला
मेरी जीवन स्मृति के जिसमें
खिल उठते वे रूप मधुर थे