शब्दकमल खिला है

| रचनाकार | विश्वरंजन |
|---|---|
| प्रकाशक | प्रकाशन संस्थान |
| वर्ष | 1999 |
| भाषा | हिन्दी |
| विषय | कविता |
| विधा | |
| पृष्ठ | 119 |
| ISBN | |
| विविध |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
- तुम ग़लत कहती हो मैं तुम्हारा मुन्ना नहीं हूँ माँ / विश्वरंजन
- रात की बात / विश्वरंजन
- शब्दों के बाबत / विश्वरंजन
- रेगीस्तानी स्वप्न का ध्वस्त होना / विश्वरंजन
<sort order="asc" class="ul">