भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हुस्न फिर फ़ित्नागार है क्या कहिये / मजाज़ लखनवी

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:43, 7 मई 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मजाज़ लखनवी }} Category:ग़ज़ल <poem>हुस्न फिर फ़ित्नाग...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हुस्न फिर फ़ित्नागार है क्या कहिये|
दिल की जानिब नज़र है क्या कहिये|

फिर वही रहगुज़र है क्या कहिये,
ज़िन्दगी राहबर है क्या कहिये|

हुस्न ख़ुद पर्दादार है क्या कहिये,
ये हमारी नज़र है क्या कहिये|

आह तो बे-असर थी बरसों से,
नग़्मा भी बे-असर है क्या कहिये|

हुस्न है अब न हुस्न के जलवे,
अब नज़र ही नज़र है क्या कहिये|

आज भी है 'मज़ाज़' ख़ाक्नशीं,
और नज़र अर्श पर है क्या कहिये|