Last modified on 8 मई 2009, at 14:38

तुम तूफान समझ पाओगे / हरिवंशराय बच्चन

गीले बादल, पीले रजकण,

सूखे पत्ते, रूखे तृण घन

लेकर चलता करता 'हरहर'--इसका गान समझ पाओगे?

तुम तूफान समझ पाओगे ?

गंध-भरा यह मंद पवन था,

लहराता इससे मधुवन था,

सहसा इसका टूट गया जो स्वप्न महान, समझ पाओगे?

तुम तूफान समझ पाओगे ?


तोड़-मरोड़ विटप-लतिकाएँ,

नोच-खसोट कुसुम-कलिकाएँ,

जाता है अज्ञात दिशा को ! हटो विहंगम, उड़ जाओगे !

तुम तूफान समझ पाओगे ?