भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पालतू / प्रभाकर माचवे

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:13, 27 जनवरी 2008 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पहले उस ने पाले कुछ पिल्ले
बडे हुए, भाग गये;
पाली कुछ बिल्लियाँ, वे
दोस्तों को दे दी ।
फिर पाली कुछ लाल मछलियाँ,
वे मर गयीं;
पाला एक तोता, जो उड गया ।
जोडे का एक बचा
उठा गयी मित्र की बिडाली उसे
पालने की यह आदत
कम न हुई ।
सुना है कि आजकल, रखें हैं कुछ आदमी
पालतू,
फ़ालतू !
होगा क्या उनका ?
(मार देंगे पडोसी के बडे बम ?
फिर भी नहीं होंगे कम) ।