Last modified on 31 अगस्त 2006, at 18:56

चार और पंक्तियाँ / प्रभाकर माचवे

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:56, 31 अगस्त 2006 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कवि: प्रभाकर माचवे

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~

जब दिल ने दिल को जान लिया
जब अपना-सा सब मान लिया
तब ग़ैर-बिराना कौन बचा
यदि बचा सिर्फ़ तो मौन बचा !