आओ कि कोई ख़्वाब बुनें / साहिर लुधियानवी
आओ कि कोई ख़्वाब बुनें कल के वास्ते
वरना ये रात आज के संगीन दौर की
डस लेगी जान-ओ-दिल को कुछ ऐसे कि जान-ओ-दिल
ता-उम्र फिर न कोई हसीं ख़्वाब बुन सकें
[संगीन दौर = कठिन समय]
[ता-उम्र = सारी उम्र]
गो हम से भागती रही ये तेज़-गाम उम्र
ख़्वाबों के आसरे पे कटी है तमाम उम्र
[तेज़-गाम = तेज़ चलने वाली]
ज़ुल्फ़ों के ख़्वाब, होंठों के ख़्वाब, और बदन के ख़्वाब
मेराज-ए-फ़न के ख़्वाब, कमाल-ए-सुख़न के ख़्वाब
[मेराज-ए-फ़न = कला की उँचाई तक पहुँचना; कमाल-ए-सुख़न = बेहतरीन कविता]
तहज़ीब-ए-ज़िन्दगी के, फ़रोग़-ए-वतन के ख़्वाब
ज़िन्दाँ के ख़्वाब, कूचा-ए-दार-ओ-रसन के ख़्वाब
[तहज़ीब-ए-ज़िन्दगी = जीने की कला; फ़रोग़-ए-वतन = देश का विकास]
[ज़िन्दाँ = जीवन; कूचा-ए-दार-ओ-रसन = फ़ाँसी तक जाने वाला रस्ता]
ये ख़्वाब ही तो अपनी जवानी के पास थे
ये ख़्वाब ही तो अपने अमल के असास थे
ये ख़्वाब मर गये हैं तो बे-रंग है हयात
यूँ है कि जैसे दस्त-ए-तह-ए-सन्ग है हयात
[अमल = साकार करना; असास = नींव; हयात = जीवन]
[दस्त-ए-तह-ए-सन्ग = पत्थर के नीचे हाथ दब जाना (मजबूरी)]
आओ कि कोई ख़्वाब बुनें कल के वास्ते
वरना ये रात आज के संगीन दौर की
डस लेगी जान-ओ-दिल को कुछ ऐसे कि जान-ओ-दिल
ता-उम्र फिर न कोई हसीं ख़्वाब बुन सकें