भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

परावर्तन / राधावल्लभ त्रिपाठी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:45, 17 मई 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राधावल्लभ त्रिपाठी |संग्रह=सन्धानम / राधावल्ल...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

साँझ के समय
भौंक रहे हैं कुत्ते गली में मिलकर
आधी रात के सन्नाटे में
सियार करते हैं हुआँ हुआँ
लौट कर आते हैं पहले किए हुए पाप
भीतर ही भीतर गँसते हैं, धँसते हैं

जो दिन बीत चुका था
और जिसे दफ़ना आए थे मन के मसान में
वह अचानक उठ खड़ा होता है
जैसे सपना टूटने पर आदमी

वह अचानक भीतर की कोई खिड़की खोलकर झाँकता है
और लगाता है ज़ोर से पुकार-- यह आ गया मैं!