Last modified on 24 मई 2009, at 17:20

मेरो मन अनत कहाँ सुख पावे / सूरदास

मेरो मन अनत कहाँ सुख पावै।

जैसे उड़ि जहाज की पंछी, फिरि जहाज पै आवै॥

कमल-नैन को छाँड़ि महातम, और देव को ध्यावै।

परम गंग को छाँड़ि पियासो, दुरमति कूप खनावै॥

जिहिं मधुकर अंबुज-रस चाख्यो, क्यों करील-फल भावै।

'सूरदास' प्रभु कामधेनु तजि, छेरी कौन दुहावै॥