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तुम्हारी ज़िन्दगी में / परवीन शाकिर

तुम्हारी ज़िन्दगी में

मैं कहां पर हूं ?


हवाए-सुबह में

या शाम के पहले सितारे में

झिझकती बूंदा-बांदी में

कि बेहद तेज़ बारिश में

रुपहली चांदनी में

या कि फिर तपती दुपहरी में

बहुत गहरे ख़यालों में

कि बेहद सरसरी धुन में


तुम्हारी ज़िन्दगी में

मैं कहां पर हूं ?


हुजूमे-कार से घबरा के

साहिल के किनारे पर

किसी वीक-येण्ड का वक़्फ़ा

कि सिगरेट के तसलसुल में

तुम्हारी उंगलियों के बीच

आने वाली कोई बेइरादा रेशमी फ़ुरसत

कि जामे-सुर्ख़ में

यकसर तही

और फिर से

भर जाने का ख़ुश-आदाब लम्हा

कि इक ख़्वाबे-मुहब्बत टूटने

और दूसरा आग़ाज़ होने के

कहीं माबैन इक बेनाम लम्हे की फ़रागत ?


तुम्हारी ज़िन्दगी में

मैं कहां पर हूं ?