भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चाह भरो चंचल हमारो चित्त नौल बधू / पद्माकर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:12, 31 मई 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पद्माकर }}<poem> चाह भरो चंचल हमारो चित्त नौल बधू , त...)
चाह भरो चंचल हमारो चित्त नौल बधू ,
तेरी चाल चँचल चितौनि मे बसत है ।
कहै पदमाकर सुचँचल चितौनिहु ते ,
औझकि उझकि झझकनि मे फसत है ।
औझकि उझकि झझकनि ते सुरझि वेस ,
बाहीँ की गहनि माँहि आइ बिलसत है ,
बाहीँ की गहनि ते सुनाही की कहनि आयो ,
नाहीँ की कहनि ते सुनाहीं निकसत है ।
पद्माकर का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मलहोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।