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सेवक सिपाही सदा उन रजपूतन के / ठाकुर

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सेवक सिपाही सदा उन रजपूतन के

दान युद्ध वीरता मेँ नेकु जे न मुरके ।
जस के करैया हैँ मही के महिपालन के

हिय के विशुद्ध हैँ सनेही साँचे उर के ।
ठाकुर कहत हम बैरी बेवकूफन के

जालिम दमाद हैँ अदेनिया ससुर के ।
चोजन चोजी महा मौजिन के महाराज

हम कविराज हैँ पै चाकर चतुर के ॥


ठाकुर का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।