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कविता / कुंवर नारायण

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कविता वक्तव्य नहीं गवाह है

कभी हमारे सामने

कभी हमसे पहले

कभी हमारे बाद


कोई चाहे भी तो रोक नहीं सकता

भाषा में उसका बयान

जिसका पूरा मतलब है सचाई

जिसका पूरी कोशिश है बेहतर इन्सान


उसे कोई हड़बड़ी नहीं

कि वह इश्तहारों की तरह चिपके

जुलूसों की तरह निकले

नारों की तरह लगे

और चुनावों की तरह जीते


वह आदमी की भाषा में

कहीं किसी तरह ज़िन्दा रहे, बस