फुटकर शेर-1 / शमशाद इलाही अंसारी
1.
बेज़ुबानों को तू अपनी बात मत सुना "शम्स"
कि अपनी लोरी-गाते गाते नींद तुझको आ जायेगी।
(रचनाकाल: 25.07.2002)
2.
ये रंगीनियाँ ये नज़ारे कहानियाँ-सी नज़र आती हैं
अब तक जो गुज़री उम्र वो बेमानी-सी नज़र आती है।
(रचनाकाल: 25.07.2002}
3.
तमन्नाओं के भँवर उमंगों के सागर हैं
मेरे मन के भीतर ये कैसे उजाले हैं।
(रचनाकाल: 27.08.2002)
4.
हज़ारों मील हैं दरम्याँ पर तू दूर नहीं है मुझसे
शीशे में अक़्स जैसा नाता है मेरा तुझसे।
(रचनाकाल: 16.09.2002)
5.
मैं भरा प्याला हूँ, नाम है मेरा मौहब्बत
जिसको तलब है आए, प्यास बुझा ले अपनी|
(रचनाकाल: 01.11.2002)
6.
तेरे बिना ये रातें इतनी क्यों बेचैन लगती हैं,
धड़कने हैं मेरी लेकिन साँसे तेरी लगती हैं।
(रचनाकाल: 01.11.2002)
दीवाना करे देती हैं ये तेरी हसरतों की कोमल बाँहें,
जकडे रख्नना मुझे जब तलक मैं तुझमें घुल न जाऊँ|
(रचनाकाल: 19.04.2003)