सीखो आँखें पढ़ना साहिब
होगी मुश्किल वरना साहिब
सम्भल कर तुम दोष लगाना
उसने खद्दर पहना साहिब
तिनके से सागर नापेगा
रख ऐसे भी हठ ना साहिब
दीवारें किलकारी मारे
घर में झूले पलना साहिब
पूरे घर को महकाता है
माँ का माला जपना साहिब
सब को दूर सुहाना लागे
क्यूं ढ़ोलों का बजना साहिब
कितनी कयनातें ठहरा दे
उस आँचल का ढ़लना साहिब