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एक भी आँसू न कर बेकार / रामावतार त्यागी

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एक भी आँसू न कर बेकार
जाने कब समंदर माँगने आ जाए

पास प्यासे के कुँआ आता नहीं है
यह कहावत है अमरवाणी नहीं है
और जिसके पास देने को न कुछ भी
एक भी ऎसा यहाँ प्राणी नहीं है

कर स्वयं हर गीत का श्रंगार
जाने देवता को कौन सा भा जाय

चोट खाकर टूटते हैं सिर्फ दर्पण
किन्तु आकृतियाँ कभी टूटी नहीं हैं