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एक भी आँसू न कर बेकार / रामावतार त्यागी
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एक भी आँसू न कर बेकार
जाने कब समंदर माँगने आ जाए
पास प्यासे के कुँआ आता नहीं है
यह कहावत है अमरवाणी नहीं है
और जिसके पास देने को न कुछ भी
एक भी ऎसा यहाँ प्राणी नहीं है
कर स्वयं हर गीत का श्रंगार
जाने देवता को कौन सा भा जाय
चोट खाकर टूटते हैं सिर्फ दर्पण
किन्तु आकृतियाँ कभी टूटी नहीं हैं
आदमी से रूठ जाता है सभी कुछ
पर समस्यायें कभी रूठी नहीं हैं
हर छलकते अश्रु को कर प्यार
जाने आत्मा को कौन सा नहला जाय!
व्यर्थ है करना खुशामद रास्तों की
काम अपने पाँव ही आते सफर में
वह न ईश्वर के उठाए भी उठेगा
जो स्वयं गिर जाए अपनी ही नजर में
हर लहर का कर प्रणय स्वीकार
जाने कौन तट के पास पहुँच जाय