Last modified on 12 सितम्बर 2009, at 18:48

छाया और धूप को लेकर / अवतार एनगिल

प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:48, 12 सितम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}}<poem> {{KKRachna |रचनाकार=अवतार एनगिल |संग्रह=अन्धे कहार / अवतार एनगिल }} ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

{{KKRachna
|रचनाकार=अवतार एनगिल
|संग्रह=अन्धे कहार / अवतार एनगिल
}}

समन्दर किनारे

भागते हुए

मैंने धूप का एक टुकड़ा उठाया

और अपनी हथेली में बंद कर लिया



रेगिस्तान में

सफ़र करते हुए

मैंने छाया

का एक अंश पकड़ा

और दूसरी मुट्ठी में

सहेज लिया



पर्वत पर चढ़ते हुए

रुककर

मैंने अपनी हथेलियां खोलीं

और लड़खड़ा गया......



बताओ तो भला

कौन चल पाया है

बिना लड़खड़ाए,

छाया और धूप को

एक साथ मुट्ठियों में भरकर