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छाया और धूप को लेकर / अवतार एनगिल
Kavita Kosh से
समन्दर किनारे
भागते हुए
मैंने धूप का एक टुकड़ा उठाया
और अपनी हथेली में बंद कर लिया
रेगिस्तान में
सफ़र करते हुए
मैंने छाया
का एक अंश पकड़ा
और दूसरी मुट्ठी में
सहेज लिया
पर्वत पर चढ़ते हुए
रुककर
मैंने अपनी हथेलियां खोलीं
और लड़खड़ा गया......
बताओ तो भला
कौन चल पाया है
बिना लड़खड़ाए,
छाया और धूप को
एक साथ मुट्ठियों में भरकर