भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ममत्व से दूर / प्रेमशंकर रघुवंशी

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:10, 13 सितम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेमशंकर रघुवंशी }} <poem> बछड़ा दूध पीता तब तक ही प...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बछड़ा दूध पीता
तब तक ही पहचानता माँ को

रँभाते वक़्त भी
यही ध्वनि निकलती कंठ से उसके

बड़ा होते बढ़ने लगते
माथे पर सींग

ममत्व से जो भी दूर जाता
पशुत्व के क़रीब होता
जहाँ पूरी दुनिया ही उसे
अपनी चरागाह लगती है।