भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हां ना के बीच / प्रेमशंकर रघुवंशी
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:17, 13 सितम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेमशंकर रघुवंशी }} <poem> हाँ ना के बीच फँसा विचार ...)
हाँ ना के बीच
फँसा विचार
अविकसित कली जैसा
अपने ही वृत्त पर सूखता है
हाँ ना के बीच
फँसी इंसानियत
हर जगह निस्तेज
और बाँझ होती है
हाँ ना के बीच
फँसा मौसम
हर जगह
पतझर-सा खड़खड़ाता है
हाँ ना के बीच
फँसा सृजन
हर जगह
रेत ही रेत बिछाता है।