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मां की याद / प्रेमशंकर रघुवंशी

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जब भी
पास पड़ोस मोहल्ले में
धोए जाते कपड़े
माँजे जाते पात्र
लीपे जाते मकान
दी जाती
'दूधो नहाओ पूतो फलो' की दुआएँ
मुझे माँ की याद आती
कि तभी
घर से आँगन तक
बह पड़ती नदी
जिसमें नहाकर मिट जाती
जन्म जन्मांतर की थकान।