भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बाउल / खेया सरकार

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:44, 14 सितम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKAnooditRachna |रचनाकार=खेया सरकार }} Category:बांगला <poem> वे चाहते थे हाथ पक...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: खेया सरकार  » बाउल

वे चाहते थे हाथ पकड़ना।
कभी कन्धा तो कभी कमर।
जाती थी कभी सिनेमा, रेस्टोरेंट या कभी पार्क।
हिसाब में कोई कच्चा नहीं था।
अरुणाभ ने कहा था - "छोटा-सा फ़्लैट, मैं तुम और जो आएगा...बस।"
हिमाद्री कहता - "बहुत पैसा चाहिए, उसके बाद स्विट्जरलैंड।"
अजय का कहना था - "बाबा-माँ साथ रहेंगे, गृहस्थी देखेंगे, हम दोनों नौकरी करेंगे।"
सिर्फ़ एक ने कहाथा - "स्वप्न देखेंगे और घूमते रहेंगे।"
उसी के साथ चलना शुरू किया।
किन्तु साल बीतते न बीतते देखा,
उसको भी चाहिए बहुत सारे रुपए और रुपए...

तब से अकेले चल रही हूँ।
आकाश, हवा, पेड़, नदी सबसे कहती हूँ,
कहीं कोई बाउल देखो, तो मुझे बुलाना।


मूल बंगला से अनुवाद : कुसुम जैन