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अब न रहो दूर / राधेश्याम बन्धु

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याद की मुंडेरी पर

टेर रहा
द्वार-द्वार मधुऋतु का प्यार,
अब न
रहो दूर खिले आँगन कचनार।
सरसों को रिझा रही
अलसी की डालियाँ,
मेढों पर इठलाती
गेहूँ की बालियाँ।
बनजारिन
गन्ध लिखे पत्र बार-बार।
कभी-कभी होती है
नयनों से बात,
उम्र भर महकती है
एक मुलाकात।
करे रात
रात एक गन्ध इन्तजार।
याद की मुंडेरी पर
कागा का शोर,
भिगो-भिगो जाता है
काजल की कोर।
सूनापन
राह तके खडे-खडे द्वार,
अब न
रहो दूर खिले आँगन कचनार