भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हम नए हैं / कुमार रवींद्र

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:39, 16 सितम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार रवींद्र |संग्रह= }} <poem> हम नए हैं नए थे भी नए ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हम नए हैं
नए थे भी
नए आगे भी रहेंगे

यह हमारा गीत होना
सुनो समयातीत होना है
बन सदाशिव
ज़हर से अमृत बिलोना है
कल दहे थे
दह रहे हैं
कंठ आगे भी दहेंगे

सूर्य के संग यात्रा में
आज या कल नहीं होता
गीत का क्षण है अजन्मा
वह कभी भी नहीं खोता
बह रहे थे
कल बहे थे
जल हमेशा ही बहेंगे

सत्य वह है
जो रहा सुंदर हमेशा
वह नहीं जिसके सदा ही
बीतने का अंदेशा
कल कहा था
कह रहे हैं
यही कल भी हम कहेंगे।