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उस कोलाहल में ध्वनि उसकी / बाबू महेश नारायण

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उस कोलाहल में ध्वनि उसकी
दबती दबती आती थी
दया, प्रेम, भक्ति और हित की
ठुनुक ठुनुक के बुलाती थी-
अरे नयनों के सितारे!
"मेरे प्यारे!
अरे आरे!"-
आवाज़ यही एक निकट कुंज से मधुर स्वर में आति थी।