Last modified on 24 अक्टूबर 2009, at 22:06

मोरनाच / निदा फ़ाज़ली

अजय यादव (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:06, 24 अक्टूबर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निदा फ़ाज़ली |संग्रह=आँखों भर आकाश / निदा फ़ाज़…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

देखते-देखते
उसके चारों तरफ
सात रंगों का रेशम बिखरने लगा

धीमे-धीमे कई खिड़कियाँ सी खुलीं
फड़फड़ाती हुई फ़ाख़्ताएँ उड़ीं
बदलियाँ छा गईं

बिजलियों की लकीरें चमकने लगीं
सारी बंजर ज़मीनें हरी हो गईं

नाचते-नाचते
मोर की आँख से
पहला आँसू गिरा
खूबसूरत सजीले परों की धनक
टूटकर टुकड़ा-टुकड़ा बिखरने लगी
फिर फ़ज़ाओं से जंगल बरसने लगा
देखते-देखते