Last modified on 26 अक्टूबर 2009, at 19:39

ये धूप किनारा शाम ढले / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:39, 26 अक्टूबर 2009 का अवतरण (ये धूप किनारा शाम ढले / फ़ैज़ का नाम बदलकर ये धूप किनारा शाम ढले / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ कर दिया गया है)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

ये धूप किनारा शाम ढले,
मिलते हैं दोनो वक़्त जहाँ,
जो रात ना दिन, जो आज ना कल,
पल भर को अमर, पल भर में धुआं

इस धूप किनारे पल दो पल
होठों कि लपक बाहों कि खनक
ये मेल हमारा झूठ ना सच क्यों रार करें,
क्यों दोष धरें किस कारण झूठी बात करें
जब तेरी समंदर आंखों में
इस शाम का सूरज डूबेगा
सुख सोयेंगे घर दर वाले
और राही अपनी राह लेगा