भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मृत्यु भय / सियाराम शरण गुप्त

Kavita Kosh से
Rajeevnhpc102 (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:35, 2 नवम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सियाराम शरण गुप्त |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}}<poem>यह रात सहस…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यह रात सहसा आ गई,
नभ में अंधेरी छा गई।
सोना पड़ेगा अब हमें
ये कार्य तज कर सब हमें।

हैं कार्य पूर्ण न एक भी,
किस भाँति सो जावें अभी।
क्या नींद अच्छी आयगी,
यह रात यों ही जायगी।

दु:स्वप्न दुख पहुँचायँगे,
क्या शांति झँप कर पायँगे?
हे नाथ, लें न विराम हम,
दिन भर करें बस काम हम।

सन्ध्या समय एसे थकें,
हम नींद गहरी ले सकें,
जिसमें कि हम फिर जब जगें,
सोत्साह कार्यों में लगें।