भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
शायद मैं ज़िन्दगी की सहर / सुदर्शन फ़ाकिर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:47, 29 नवम्बर 2006 का अवतरण
रचना संदर्भ | रचनाकार: | सुदर्शन फ़ाकिर | |
पुस्तक: | प्रकाशक: | ||
वर्ष: | पृष्ठ संख्या: |
शायद मैं ज़िन्दगी की सहर लेके आ गया
क़ातिल को आज अपने ही घर लेके आ गया
ता-उम्र ढूँढता रहा मंज़िल मैं इश्क़ की
अंजाम ये कि गर्द-ए-सफ़र लेके आ गया
नश्तर है मेरे हाथ में, कांधों पे मैक़दा
लो मैं इलाज-ए-दर्द-ए-जिगर लेके आ गया
"फ़ाकिर" सनमकदे में न आता मैं लौटकर
इक ज़ख़्म भर गया था इधर लेके आ गया