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कोई नहीं है आने वाला / निदा फ़ाज़ली

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कोई नहीं है आने वाला
फिर भी कोई आने को है
आते-जाते रात और दिन में
कुछ तो जी बहलाने को है

चलो यहाँ से, अपनी-अपनी
शाखों पर लौट आए परिन्दे
भूली-बिसरी यादों को फिर
ख़ामोशी दोहराने को है

दो दरवाजे, एक हवेली
आमद, रुख़सत एक पहेली
कोई जाकर आने को है
कोई आकर जाने को है

दिन भर का हंगामा सारा
शाम ढले फिर बिस्तर प्यारा
मेरा रस्ता हो या तेरा
हर रस्ता घर जाने को है

आबादी का शोर शराबा
छोड़ के ढूँढो कोई ख़राबा
तन्हाई फिर शम्मा जला कर
कोई लफ़्जा सुनाने को है