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मैं बैरागण हूंगी / मीराबाई

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रचना संदर्भरचनाकार:  मीराबाई
पुस्तक:  प्रकाशक:  
वर्ष:  पृष्ठ संख्या:  

बाला मैं बैरागण हूंगी।
जिन भेषां म्हारो साहिब रीझे, सोही भेष धरूंगी।
सील संतोष धरूँ घट भीतर, समता पकड़ रहूंगी।
जाको नाम निरंजन कहिये, ताको ध्यान धरूंगी।
गुरुके ग्यान रंगू तन कपड़ा, मन मुद्रा पैरूंगी।
प्रेम पीतसूँ हरिगुण गाऊँ, चरणन लिपट रहूंगी।
या तन की मैं करूँ कीगरी, रसना नाम कहूंगी।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, साधां संग रहूंगी।