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म्हारे घर / मीराबाई
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रचना संदर्भ | रचनाकार: | मीराबाई | |
पुस्तक: | प्रकाशक: | ||
वर्ष: | पृष्ठ संख्या: |
म्हारे घर होता जाज्यो राज।
अबके जिन टाला दे जाओ सिर पर राखूं बिराज।।
म्हे तो जनम जनमकी दासी थे म्हांका सिरताज।
पावणड़ा म्हांके भलां ही पधारया सब ही सुघारण काज।।
म्हे तो बुरी छां थांके भली छै घणेरी तुम हो एक रसराज।
थाने हम सब ही की चिंता (तुम) सबके हो गरीब निवाज।।
सबके मुकुट-सिरोमणि सिर पर मानो पुन्य की पाज।
मीराके प्रभु गिरधर नागर बांह गहे की लाज।।