भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सैनिक / श्रीकृष्ण सरल

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:01, 24 मार्च 2008 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मारने और मरने का काम कौन लेता

यह कठिन काम जो करता, वह सैनिक होता,

जैसे चाहे, जब चाहे मौत चली आए

जो नहीं तनिक भी डरता, वह सैनिक होता ।


यह नहीं कि वह वेतन-भोगी ही होता है

वह मातृभूमि का होता सही पुजारी है,

अर्चन के हित अपने जीवन को दीप बना

उसने माँ की आरती सदैव उतारी है ।


पैसा पाने के लिए कौन जीवन देगा

जीवन तो धरती-माँ के लिए दिया जाता,

धरती के रखवाले सैनिक के द्वारा ही

है जीवन का सच्चा सम्मान किया जाता ।


यह नहीं कि वह अपनी ही कुर्बानी देता

दुख के सागर में वह परिवार छोड़ जाता,

जब अपनी धरती-माता की सुनता पुकार

तिनके जैसे सारे सम्बन्ध तोड़ जाता ।


सैनिक, सैनिक होता है, वह कुछ और नहीं

वह नहीं किसी का भाई पुत्र और पति है,

कर्त्तव्य-सजग प्रहरी वह धरती माता का

जो पुरस्कार उसका सर्वोच्च, वीर-गति है ।


सैनिक का रिश्ता होता अपनी धरती से

वह और सभी रिश्तों से ऊपर होता है,

जब जाग रहा होता सैनिक, हम सोते हैं

वह हमें जगाने, चिर-निद्रा में सोता है ।