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तुम छेड़ो मेरी बीन कसी रसराती / हरिवंशराय बच्चन

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तुम छेड़ो मेरी बीन कसी, रसराती।
बंद किवाड़े कर-कर सोए
सब नगरी के बासी,
वक्त तुम्हारे आने का यह
मेरे राग विलासी,
आहट भी प्रतिध्वनित तुम्हारी
इस पर होती आई,
तुम छेड़ो मेरी बीन कसी, रसराती।