Last modified on 13 नवम्बर 2009, at 22:02

सखी मोरे सैंया नहिं आये / भारतेंदु हरिश्चंद्र

अजय यादव (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:02, 13 नवम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भारतेंदु हरिश्चंद्र }} <poem> सखी मोरे सैंया नहिं आय…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सखी मोरे सैंया नहिं आये, बीति गई सारी रात।
दीपक-जोति मलिन भई सजनी, होय गयो परभात।
देखत बाट भई यह बिरियाँ, बात कही नहिं जात।
’हरीचंद’ बिन बिकल बिरहिनी ठाढ़ी ह्वै पछितात॥