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शिकवए-ग़म तेरे हुज़ूर किया / हसरत मोहानी
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शिकवए-ग़म<ref >ग़म की शिकायत</ref> तेरे हुज़ूर किया
हमने बेशक बड़ा क़ुसूर किया
दर्दे-दिल को तेरी तमन्ना ने
ख़ूब सरमायाए-सरूर<ref >आनन्द की पूंजी</ref> किया
नाज़े-ख़ूबाँ<ref >सुन्दरियों के गर्व</ref> ने आ़शिक़ों के सिवा
आ़रिफ़ों<ref >ज्ञानियों</ref> को भी नासबूर<ref >बेचैन</ref> किया
यह भी इक छेड़ है कि क़ुदरत ने
तुमको ख़ुद-बीं<ref >घमण्डी</ref> हमें ग़यूर<ref >आत्म-सम्मानपूर्ण</ref> किया
नूरे-अर्ज़ो-समा<ref >पृथ्वी और आकाश का प्रकाश</ref> को नाज़ है यह
कि तेरी शक्ल में ज़हूर <ref >प्रकट होना</ref> किया
आपने क्या किया कि 'हसरत' से-
न मिले, हुस्न का ग़रूर किया!
शब्दार्थ
<references/>