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जीवन का फल / सुमित्रानंदन पंत
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जीवन का फल, जीवन का फल!
यह चिर यौवन-श्री से मांसल!
इसके रस में आनन्द भरा,
इसका सौन्दर्य सदैव हरा;
पा दुख-सुख का छाया-प्रकाश
परिपक्व हुआ इसका विकास;
इसकी मिठास है मधुर प्रेम,
औ’ अमर बीज चिर विश्व-क्षेम!
जीवन का फल, जीवन का फल!
इसका रस लो,--हो जन्म सफल।
तीखे, चमकीले दाँत चुभा
चाबो इसको, क्यों रहे लुभा?
निर्भीक बनो, साहसी, शक्त,
जीवन-प्रेमी,--मत हो विरक्त।
सुन्दर इच्छा की धरो आग,
प्रिय जगती पर दयितानुराग!
रचनाकाल: मई’१९३५