अमृत का नाम सुना
अमर होने का सपना देखने लगे।
नाम सुना सुख का
स्वर्ग का मनचाहा नक्शा बना डाला
मन ही मन।
प्यार का नाम सुना
मर मिटे किसी मनचाही सूरत पर।
अमृत और सुख और प्यार
तीनों से दूर
अकेले-अकेले अपने से जूझना
पड़ोसी तक से भी न पूंछना कि कैसे हो ?
ख़ुद को छलने के लिए
इतना क्या कम है ?
रचनाकाल : 1991, विदिशा