दोस्त ग़मख़्वारी में मेरी सअई फ़रमायेंगे क्या / ग़ालिब
लेखक: ग़ालिब
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*
दोस्त ग़मख़्वारी में मेरी सई फ़र्मायेंगे क्या
ज़ख़्म के भरने तलक नाख़ुन न बढ़ जायेंगे क्या
बेनियाज़ी हद से गुज़री बन्दा परवर कब तलक
हम कहेंगे हाल-ए-दिल और आप फ़र्मायेंगे क्या
हज़रत-ए-नासेह गर आयें दीदा-ओ-दिल फ़र्श-ए-राह
कोई मुझ को ये तो समझा दो कि समझायेंगे क्या
आज वां तेग़-ओ-कफ़न बाँधे हुए जाता हूँ मैं
उज़्र मेरा क़त्ल करने में वो अब लायेंगे क्या
गर किया नासेह ने हम को क़ैद अच्छा यों सही
ये जुनून-ए-इश्क़ के अन्दाज़ छुट जायेंगे क्या
ख़ाना ज़ाद-ए-ज़ुल्फ़ हैं ज़न्जीर से भागेंगे क्या
हैं गिरफ़्तार-ए-वफ़ा ज़िन्दाँ से घबरायेंगे क्या
है अब इस मामूरे में क़हत-ए-ग़म-ए-उल्फ़त "असद"
हम ने ये माना कि दिल्ली में रहे खायेंगे क्या