Last modified on 16 जनवरी 2010, at 09:18

कहत गुपाल माल मंजुमनि पुंजनि की / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’

Himanshu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:18, 16 जनवरी 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जगन्नाथदास 'रत्नाकर' }} Category:पद <poem> कहत गुपाल माल …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कहत गुपाल माल मंजुमनि पुंजनि की,
गुंजनि की माला की मिसाल छवि छावै ना ।
कहै रतनाकर रतन मैं किरीट अच्छ,
मोर-पच्छ-अच्छ-लच्छ असहू सु-भावै ना ॥
जसुमति मैया की मलैया अरु माखन कौ,
कामधेनु गोरस हूँ गूढ़ गुन आवै ना ।
गोकुल की रज के कनूका औं तिनूका सम,
संपति त्रिलोक की बिलोकन मैं आवै ना ॥10॥