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नंद और जसोमति के प्रेम पगे पालन की / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’

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नंद और जसोमति के प्रेम पगे पालन की,
लाड़-भरे लालन की लालच लगावती ।
कहै रतनाकर सुधाकर-प्रभा सौं मढ़ी,
मंजु मृगुनैनि के गुन-गन गावती ॥
जमुना कछारनि की रंग रस-रारनि की,
बिपिन-बिहारनि की हौंस हुमसावती ।
सुधि ब्रज-बासिनि दिवैया सुख-रासिनी की,
ऊधौ नित हमकौं बुलावन कौं आवती ॥5॥