भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

छपनिया काल रे छपनिया काल / राजस्थानी

Kavita Kosh से
Sharda monga (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:11, 20 जनवरी 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: ''मुझे इस गीत की कुछ ही पंक्तियाँ स्मरण हैं जो इस प्रकार हैं ;'' ओ म्…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुझे इस गीत की कुछ ही पंक्तियाँ स्मरण हैं जो इस प्रकार हैं ;

ओ म्हारो छप्पन्हियो काल्ड फेरो मत अज भोल्डी दुनियाँ में.

बाजरे री रोटी गंवार की फल्डी मिल जाये तो बात है घणी

म्हारो छपप्नीयो काल्ड फेरो अज भोल्डी दुनियाँ में.