रचनाकार: तारा सिंह
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- अभी मरने की बात कहाँ
- अभी तो हूँ मैं बंद कली
- भौंरे ने घूँघट खोला ही नहीं
- मृदु जल से नहलाया ही नहीं
- जीवन परिक्रमा पूरी हुई कहाँ
- अभी मरने की बात कहाँ
- उठते सूरज को देखा ही नहीं
- चाँदनी में नहाया ही नहीं
- आकांक्षाएँ मेरी बाँहों को थामी ही नहीं
- धरा से धैर्य सीखी ही नही
- सुंदरता अंगों से लिपटी कहाँ
- अभी मरने की बात कहाँ
- अभी डाली पर कोमल पत्ते भरे नहीं
- पौधे जमीन को जड़ से जकड़े नहीं
- सौरभ सुगंध का व्यापारी
- भौंरा अभी तक पहुँचा कहाँ
- अभी मरने की बात कहाँ
- गुलशन में बहार आई नहीं
- चम्पा की कतार सजी नहीं
- मोलसिरी की छाँव में बैठी नहीं
- मतवाली कोयल को अमुआ की
- डाली पर पी- पी पुकारते सुनी कहाँ
- अभी मरने की बात कहाँ
- सीने से लगाकर हवा ने दुलराया नहीं
- पुष्प, पुष्प को पहचाना नहीं
- अभी तो हूँ , मैं एक बंद कली
- मेरे विकसित रूप को बाग का
- माली ने देखा कहाँ
- अभी मरने की बात कहाँ