Last modified on 4 फ़रवरी 2010, at 12:42

जब शहर से वापस आना / रवीन्द्र प्रभात

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:42, 4 फ़रवरी 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रवीन्द्र प्रभात }} {{KKCatKavita‎}}‎ <poem> कारखानों का विषैल…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कारखानों का विषैला धुआँ
मौत की मशीन
नदियों का प्रदूषित पानी
जिस्म खरोंचती बेशर्म लड़कियाँ
होटलों की रंगीन शाम
और फिल्मों के -
अश्लील शब्द मत लाना
जब शहर से वापस आना .....!!

उन्मादियों के नारे
सायरन वाली गाड़ियों की चीख़
सिसकते फुटपाथ
घटनाओं-दुर्घटनाओं के चित्र
अखावारों के भ्रामक कोलाज़
और दंगे की -
गर्म हवाएँ मत लाना
जब शहर से वापस आना ....!!

मगर-
दादा के दम्मे की दवा
माँ के लिए एक पत्थर की आँख
बच्चों के लिए गुड़ का ढेला
और बहन के लिए
पसीने से तरबितर नवयुवक का रिश्ता
अवश्य लाना
जब शहर से वापस आना .....!!