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वैस की निकाई, सोई रितु सुखदाई / घनानंद

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वैस की निकाई, सोई रितु सुखदायी, तामें -
वरुनाई उलहत मदन मैमंत है ।
अंग-अंग रंग भरे दल-फल-फूल राजैं,
सौरभ सरस मधुराई कौ न अंत है ॥
मोहन मधुप क्यों न लटू ह्वै सुभाय भटू,
प्रीति कौ तिलक भाल धरै भागवंत है ।
सोभित सुजान ’घनाआनँद’ सुहाग सींच्यौ,
तेरे तन-बन सदा बसत बसंत है ॥