Last modified on 27 फ़रवरी 2010, at 14:43

बैस नई, अनुराग मई / घनानंद

Himanshu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:43, 27 फ़रवरी 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=घनानंद }} <poem> बैस नई, अनुराग मई, सु भई फिरै फागुन की …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

बैस नई, अनुराग मई, सु भई फिरै फागुन की मतवारी ।
कौंवरे हाथ रचैं मिंहदी, डफ नीकैं बजाय रहैं हियरा रीन ॥
साँवरे भौंर के भाय भरी, ’घनाआनँद’ सोनि में दीसत न्यारी ।
कान्ह है पोषत प्रान-पियें, मुख अंबुज च्वै मकरंद सी गारी ॥