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मन भावन के घर जाए गोरी / शैलेन्द्र
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गीतकार : शैलेन्द्र सिंह
ऐ मेरे दिल कहीं और चल
ग़म की दुनिया से दिल भर गया
ढूंढ ले अब कोई घर नया
ऐ मेरे दिल कहीं और चल
चल जहाँ गम के मारे न हों
झूठी आशा के तारे न हों
झूठी आशा के तारे न हों
इन बहारों से क्या फ़ायदा
जिस में दिल की कली जल गई
ज़ख़्म फिर से हरा हो गया
ऐ मेरे दिल कहीं और चल
चार आँसू कोई रो दिया
फेर के मुँह कोई चल दिया
फेर के मुँह कोई चल दिया
लुट रहा था किसी का जहाँ
देखती रह गई ये ज़मीं
चुप रहा बेरहम आसमां
ऐ मेरे दिल कहीं और चल