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मुझसे अपनी नित ऐसी आरती / प्रेम नारायण 'पंकिल'

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मुझसे अपनी नित ऐसी आरती करा लो जीवन-धन।
रोम-रोम का दीप जल उठे बने शरीर थार-कंचन।।

हृदय पयोनिधि के मंथन से
निकला हो श्रद्धा का घृत।
तिल-तिल जले विनय की बाती
पुलकावलि-कपूर-मिश्रित।
सच्चे प्रभु की जय-जय स्वर से
मुखरित हो अर्चना-भवन-
रोम-रोम का दीप0........................।।1।।

विरहानल से जलते उर में,
उमड़े प्रवल भाव-बादल।
आलोकित प्रियतम-पद-नख पर
दृग बरसायें गंगा जल।
मन-विकार के अंधकार का
 हो जाये सर्वस्व हवन-
रोम-रोम का दीप0........................।।2।।

अनुपम आनंदातिरेक में
थिरकें-बहें प्राण पगले।
शारणागति-आरती-ज्योति से
आहों काकाजल निकले।
रहे प्रेम-पट ओटन लौ को
निगल जाय वासना-पवन-
रोम-रोम का दीप0........................।।3।।

जय आनंदकंद की अनहद
बजे मृदंग-शंख-भेरी।
बार-बार मृदु भाव-दीप की
प्रभु के सम्मुख हो फेरी।
चढ़ता रहे सदा प्रियतम-पद
पर ‘पंकिल’ अनुराग-सुमन-
रोम-रोम का दीप0........................।।4।।